Tuesday, January 26, 2016

सिद्ध तांत्रिक टोटके १॰ हाथी की लीद को चाँदी के ताबीज में भरकर छोटे बच्चे के गले में पहना दें, तो उस बच्चे को बुरी नजर का दोष नही लगता। २॰ रविवार या मंगलवार के दिन अश्विनी नक्षत्र में घोड़े के नाखून को आग में जलाकर उसका धुआँ भूत-प्रेत बाधा ग्रसित रोगी को देने से उसे ऊपरी बाधा से सहज में ही मुक्ति मिल जाती है। ३॰ लहसुन के रस में हींग घोलकर वह घोल ऊपरी बाधाग्रस्त रोगी को सुंघाया जाए तो ऊपरी हवा तथा किसी अला-बला का प्रकोप समाप्त हो जाएगा। ४॰ जिस किसी स्थान पर अथवा किसी बिल में से बहुत अधिक मात्रा में कीड़े-मकोड़े निकल रहे हों तो उस स्थान या बिल पर अपने बाएँ पाँव का जूता या जूती उल्टा रख देने से वे सारे कीड़े-मकोड़े तुरन्त ही उस बिल में वापस चले जाएँगे। ५॰ कुश (कुशा) की बनी हुई चटाई पर प्रतिदिन सोने से स्त्रियों की मूत्र सम्बन्धी समस्त शिकायतें दूर हो जाती है। ६॰ यदि किसी को नजर लग जाने के कारण वह अस्वस्थ हो गया हो, तो फिटकरी का एक टुकड़ा लेकर, उसके ऊपर चारों ओर सात बार घुमाकर उस टुकड़े को जलते हुए चूल्हे में डाल दिया जाए। यह क्रिया एक ही दिन में तीनों समय करने से, नजर दोष दूर हो जाता है। ७॰ जिन लोगों का दिल कमजोर हो अथवा जो लोग सदैव भयभीत बने रहते हों, वे “संगे-यशब” के नगीने को चांदी के लॉकेट में इस प्रकार से जड़वाकर धारण करें कि नगीना आगे-पीछे से खुला रहे। ८॰ रविवार के दिन सफेद धतूरे को लाकर पुरुष के दाहिने हाथ में और स्त्री हो तो बाएँ हाथ में सफेद धागे के सहारे बांध देने से कैसा भी विषम ज्वर या बुखार हो, एक ही दिन में उतर जाएगा। ९॰ घोड़े की लीद को सुखाने के बाद उसे जलाकर, उसकी भस्म को तिल के तेल में मिलाकर बालों में नियमित रुप से लगाने से सिर के बाल काले, घने, चमकदार और बहुत अधिक लम्बे होने लगते हैं। १०॰ लोबान के पौधे की जड़ को सूत में पिरोकर, गले में धारण करने से असाध्य से असाध्य खांसी का रोग भी दूर हो जाता है। ११॰ बिजौरे की जड़ और धतूरे के बीज को प्याज के साथ महीन पीसकर जिसे भी सुंघाया जाएगा, वह सदैव के लिए वशीभूत हो जाएगा।

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यदि परिवार में कोई व्यक्ति निरन्तर अस्वस्थ्य रहता है, तो प्रथम गुरूवार को आटे के दो पेड़े बनाकर उसमें गीली चने की दाल के साथ गुड़ और थोड़ी सी पिसी काली हल्दी को दबाकर रोगी व्यक्ति के उपर से 7 बार उतार कर गाय को खिला दें।...


1- यदि परिवार में कोई व्यक्ति निरन्तर अस्वस्थ्य रहता है, तो प्रथम गुरूवार को आटे के दो पेड़े बनाकर उसमें गीली चने की दाल के साथ गुड़ और थोड़ी सी पिसी काली हल्दी को दबाकर रोगी व्यक्ति के उपर से 7 बार उतार कर गाय को खिला दें। यह उपाय लगातार 3 गुरूवार करने से आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा।
2-यदि कन्या की शादी में कोई रूकावट आ रही हो तो सोमवार को या प्रदोष के दिन पूजा वाले 5 नारियल लें ! भगवान शिव की मूर्ती या फोटो के आगे रख कर “ऊं श्रीं वर प्रदाय श्री नमः” मंत्र का पांच माला जाप करें फिर वो पांचों नारियल शिव जी के मंदिर में चढा दें ! विवाह की बाधायें अपने आप दूर होती जांयेगी ।
3-छोटा बच्चा सोते समय डर जाता हो तो मंगलवार अथवा रविवार के दिन फिटकरी का एक टुकड़ा बच्चे के सिरहाने रख दें।
4-आपके लाख प्रयत्न करने के बाद भी आप अभी तक बेरोजगार हैं और आपमें ही भावना घर कर गई है तो यह करें-एक बिना दाग वाला पीला नींबू लें, उसके चार बराबर टुकड़े कर लें. जब दिन ढल जाये तब चौराहे पर जाकर चारों दिशाओं में उन्हे एक-एक फेंक दें और बिना पीछे मुड़े देखे घर आ जायें. आपको शीध्र ही लाभ होगा. यह प्रयोग सात दिन लगातार करें. आपका काम शीध्र बनेगा व आपको रोजगार मिलेगा।
5- चांदी अथवा तांबे के बर्तन में दूध भरकर रात को अपने बेड यानि पलंग के सिरहाने रखें। इस दूध को सूर्योदय से पहले पीपल या कीकर के पेड़ की जड़ों में चढ़ा दे।आपके मनचाहे काम बनते चले जाएंगें। 
6-अगर किसी शुभ काम से जाना हो, तो एक नींबू लें। उस पर 4 लौंग गाड़ दें तथा इस मंत्र का जाप करें "ॐ श्री हनुमंते नम:" 21बार जाप करने के बाद उसको साथ लेकर जाएं। काम में किसी प्रकार की बाधा नहीं आएगी।
अगले रविवार को दीपावली पर किये जाने वाले टोटको की जानकारी ले जो बहुत उपयोगी हो सकते है।

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र
ॐ गं गणपतये नमः। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-वाहन-भूमि-प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ गुरवे नमः, ॐ श्रीकृष्णाय नमः, ॐ बलभद्राय नमः, ॐ श्रीरामाय नमः, ॐ हनुमते नमः, ॐ शिवाय नमः, ॐ जगन्नाथाय नमः, ॐ बदरीनारायणाय नमः, ॐ श्री दुर्गा-देव्यै नमः।।
ॐ सूर्याय नमः, ॐ चन्द्राय नमः, ॐ भौमाय नमः, ॐ बुधाय नमः, ॐ गुरवे नमः, ॐ भृगवे नमः, ॐ शनिश्चराय नमः, ॐ राहवे नमः, ॐ पुच्छानयकाय नमः, ॐ नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।।
ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते न भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि। ॐ नमो मणिभद्रे। जय-विजय-पराजिते ! भद्रे ! लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। सर्व विघ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा) सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच, राज-द्वारे जयं कुरू कुरू, व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं, रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय, पूर्णा आयुः कुरू कुरू, स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू, हुम् फट् स्वाहा।।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ नमो भगवते, विश्व-मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरूषोत्तमाय। रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं भंजय-भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय-आकर्षय, मम शत्रुं मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय-विद्वेषय, स्तम्भय-स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेटकान् विस्फोटान् नाशय-नाशय, वात-शुष्क-दृष्टि-सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभिः भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य-व्यापि-केचिद् देश-काल-स्थान सर्वान् हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट-व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय-विदारय, पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, ॐ नमो भगवते, ॐ नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।।
ठः ठः ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्याः श्रीं ॐ भैरवाय नमः। हरि ॐ उच्छिष्ट-देव्यै नमः। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा-पिशाचिनी ॐ ऐं ठः ठः। ॐ चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नमः। सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट्। श्रीं ॐ कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठः स्वाहा।।
शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठः स्वाहा।।
शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयुः कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू। मन्त्र तन्त्र यन्त्र कवच ग्रह पीडा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।।
सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दुःख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नमः। हरि ॐ भूर्भुवः स्वः चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नमः, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्णं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।।
एष विद्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं। शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवाः।। य पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना। तस्य सर्वान् हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।। अन्य दृष्टि विषं चैव, न देयं संक्रमे ध्रुवम्। संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च विसंशयः।। सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशयः। द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य न जायते।। किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा। लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।। ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि। शीतं समुष्णतां याति, उष्णः शीत मयो भवेत्।। नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया। भोज पत्रे लिखेद् यन्त्रं, गोरोचन मयेन च।। इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे। पुरूषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षणः।। विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यशः। सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते च पलायनम्।।
‘श्रीभृगु संहिता’ के सर्वारिष्ट निवारण खण्ड में इस अनुभूत स्तोत्र के 40 पाठ करने की विधि बताई गई है। इस पाठ से सभी बाधाओं का निवारण होता है।
किसी भी देवता या देवी की प्रतिमा या यन्त्र के सामने बैठकर धूप दीपादि से पूजन कर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। विशेष लाभ के लिये ‘स्वाहा’ और ‘नमः’ का उच्चारण करते हुए ‘घृत मिश्रित गुग्गुल’ से आहुतियाँ दे सकते हैं।
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सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त हो जाती है।
रात में शिवलिंग के पास लगाना चाहिए दीपक
महालक्ष्मी की कृपा पाने और मालामाल बनने के
लिए एक बहुत प्राचीन उपाय बताया गया है, -

 वह
उपाय है रोज रात में शिवलिंग के पास दीपक
लगाना। जो भी व्यक्ति रोज रात में
किसी सिद्ध शिव मंदिर जाकर वहां शिवलिंग के
पास दीपक जलाता है, उसे सभी देवी-देवताओं
की कृपा प्राप्त होती है और उसके जीवन से धन
की कमी दूर हो जाती है।

यह उपाय आज भी चमत्कारी रूप से शुभ फल प्रदान
करता है। ऐसा नियमित रूप से करने पर
व्यक्ति की कुंडली के सभी ग्रह दोष दूर हो जाते
हैं। बुरा समय टल जाता है, यदि कोई
अनहोनी होने वाली हो तो वह भी इस उपाय से
टल सकती है।
रात के समय जब घोर अंधेरा रहता है, तब शिवलिंग
के समीप प्रकाश करने पर महादेव अतिप्रसन्न होते
हैं। शिवपुराण के अनुसार शिवजी की इच्छा मात्र
से इस सृष्टि का निर्माण हुआ है, इसी वजह से
भोलेनाथ की प्रसन्नता से सभी देवी-देवताओं
की कृपा प्राप्त हो जाती है।
शास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल कुबेर देव
(देवताओं के कोषाध्यक्ष) पूर्व जन्म में चोर थे। वे
मंदिरों की धन-संपदा चोरी किया करते थे। एक
रात वे भगवान शिव के मंदिर में चोरी करने पहुंच
गए। रात होने की वजह से वहां काफी अंधेरा था।
अंधेरे में चोर को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।
तब उस चोर ने चोरी करने के लिए एक दीपक
जलाया। दीपक के प्रकाश में उन्हें मंदिर की धन
संपत्ति साफ-साफ दिखाई देने लगी।
वह चोर मंदिर का सामान चोरी कर
ही रहा था कि हवा से दीपक बुझ गया। उस
व्यक्ति ने पुन: दीपक जलाया, थोड़ी देर हवा से
दीपक फिर बुझ गया और कुबेर ने पुन:
दीया प्रज्जवलित कर दिया। यह प्रक्रिया कई
बार हुई।
रात के समय शिवजी के समक्ष दीपक लगाने पर
उनकी असीम कृपा प्राप्त हो जाती है। कुबेर यह
बात नहीं जानते थे, लेकिन रात के समय बार-बार
दीपक जलाने से भोलेनाथ कुबेर से अति प्रसन्न
हो गए।
कुबेर ने चोरी करते समय बार-बार दीपक जलाकर
अनजाने में ही शिवजी की पूजा की थी, इसके
फलस्वरूप महादेव ने उस चोर को अगले जन्म में
देवताओं का कोषाध्यक्ष नियुक्त कर दिया।
तभी से कुबेर देव महादेव के परमभक्त और
धनपति हो गए। इस कथा के अनुसार
जो भी व्यक्ति रात के समय शिव मंदिर में प्रकाश
करता है, उसे महादेव की विशेष कृपा प्राप्त
हो जाती है।
शास्त्रों के अनुसार कुबेर देव रावण के सोतेले भाई हैं
और इन्हें भगवान शंकर द्वारा धनपाल होने
का वरदान दिया गया है। रावण और कुबेर देव के
पिता विश्रवा ऋषि थे।
विश्रवा ऋषि की दो पत्नियां थीं इडविडा और
कैकसी। कुबेर देव की माता इडविडा है और वे
ब्राह्मण कुल की कन्या थीं। रावण
की माता कैकसी हैं। कैकसी एक असुर कन्या थीं,
इसी वजह से रावण असुर प्रवृत्ति का था।
आमतौर पर कुबेर देव की जो प्रतिमाएं दिखाई
देती हैं, वह स्थूल शरीर वाली और बेडोल होती हैं।
कुछ शास्त्रों में कुबेर देव को कुरूप बताया गया है,
जबकि कुछ ग्रंथों में कुबेर देव को राक्षस
माना गया है।
कुबेर देव को यक्ष भी बताया गया है। यक्ष भी धन
के रक्षक ही होते हैं। यक्ष धन की केवल रक्षा करते
हैं, उसे भोगते नहीं हैं। प्राचीन काल में जो मंदिर
बनाए जाते थे, उनमें मंदिर के बाहर कुबेर
की मूर्तियां भी होती थीं, क्योंकि कुबेर देव
की मंदिर की धन-संपत्ति की रक्षा करते हैं।
कुबेर देव का धन किसी खजाने के रूप में
कहीं गड़ा हुआ या स्थिर पड़ा रहता है। कुबेर
का निवास वटवृक्ष पर बताया गया है। ऐसे वृक्ष
घर-आंगन में नहीं होते, गांव या नगर के केन्द्र में
भी नहीं होते हैं, ऐसे पेड़ अधिकतर गांव-नगर के
बाहर रहवासी इलाकों से दूर या बियाबान में
ही होते हैं।
शास्त्रों के अनुसार धन प्राप्ति के लिए
देवी महालक्ष्मी की आराधना की जाना चाहिए।
महादेवी के साथ ही धन के देवता कुबेर देव को पूजने
से भी पैसों से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
इसी वजह से किसी भी देवी-देवता के पूजन के
साथ ही इनका भी पूजन करना बहुत लाभदायक
होता है।
जीवन में धन, सुख और समृद्धि बढ़ाने के लिए धर्म
शास्त्रों के अनुसार कई उपाय बताए गए हैं। जिन्हें
अपनाने से निश्चित ही शुभ
फलों की प्राप्ति होती हैं। इन्हीं उपायों में से
एक उपाय यह है कि घर में कुबेर देव
की मूर्ति या फोटो अवश्य रखना चाहिए
क्योंकि इन्हें सुख-समृद्धि देने वाले
देवता माना जाता है।

सभी क्षेत्रो मे प्रवेश की यह महाकुंजी है अब मन्त्र विद्या और कुण्डलिनी रहस्य का वो राज खोल ही देता हूँ जिस विद्या का प्रयोग करके साधारण संत महात्मा महामानव बन जाते है .

।प्रतिदिन प्रातःकाल इस मन्त्र का नियमित 5 माला जप करने से सभी प्रकार के विघ्न – बाधा नष्ट हो जाते हैं व परम सिद्धि प्राप्त होती है|
इसके जप से काम – क्रोध का मारण, इष्टदेव का मोहन, मन का वशीकरण, इन्द्रियों की विषय – वासनाओं का स्तम्भन और मोक्ष प्राप्ति हेतु उच्चाटन आदि कार्य सफल होते हैं
|| मन्त्र ||

||ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे || ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ||
ये 51 अक्षरी मन्त्र 51 शक्ति पीठो से समन्वित है 
9 लाख जप से पूर्ण सिद्धि मिलती —
:दैनिक व्यावसायिक सफ़लता और बाधा निवारण हेतु प्रयोग
             :दैनिक व्यावसायिक सफ़लता और बाधा निवारण हेतु प्रयोग

.यदि आप दैनिक कार्यों में ,रोजाना के व्यावसायिक कार्यों में अधिकतम सफलता पाना चाहते है ,कम से कम विघ्न-बाधाओं का सामना करना चाहते है ,तो निम्न प्रयोग करे ,आपके भाग्य तो नहीं बदल जायेगे ,किंतू जो मिलना है वह पूरा मिल पायेगा ऐसा विश्वास रखे ,यदि कुछ बुरा होना है तो कम से कम होगा ,किसी प्रकार की विघ्न -बाधा है तो वह दूर होगी ,किसी प्रकार का बंधन या आभिचारिक क्रिया है तो वह रुकेगी ,आप बुधवार या गणेश चतुर्थी को सूर्योदय पूर्व उठे और स्नानकर अपने ईष्ट की पूजा करे ,फिर गणेश जी की आराधना करे ,,अब एक सिन्दूरी कागज़ कम से कम १*१ फुट का ले ,उसपर स्केल की सहायता से १०८ खाने बना ले ,अब प्रत्येक खाने में ऊपर से नीचे की और १ से १०८ तक संख्याये लिखे ,,ध्यान दे सांख्ययो का क्रम न टूटे ,अर्थात किसी लाइन में यदि संख्या १२ पर समाप्त हो रही है तो उसी के नीचे १३ अंक की संख्या शुरू होकर उलटे क्रम से पुनः १ के नीचे आएगी ,फिर वहा २४ आएगा ,अब उसके नीचे २५ से आगे लिखा जाएगा ,,यदि १ लाइन में १२ खाने हो तो ९ लाइनों में १०८ खाने हो जायेगे ,,जब खाने बन जाए तो प्रत्येक खाने में लाल स्याही से " ॐ गं गणपतये नमः " लिखे ,,,अब इस कागज़ को ईश्वर मानकर विधिवत पूजन कर ले ,,धुप -आरती कर के कागज़ की तह करके रख ले ,इसे आपको सदैव अपनी जेब में रखनी है ,,जिस दिन इसका निर्माण करे उस दिन सुबह तब तक अन्न ग्रहण न करें जब तक यह बना और पूजा न कर लें ,,अब दैनिक रूप से घर से बाहर जाते समय सुबह इस कागज़ को खोलकर सामने रख लिया करे,,इसके पहले खाने पर तर्जनी उंगली रखे फिर उसे सभी खानों पर घुमाते हुए १०८ वे खाने पर ले आये ,यहाँ आप अपनी आखे बंद कर अपने ईष्ट और गणेश जी को याद करे ,और कहे हे प्रभु मेरा आज का दिन शुभ हो ,सफल हो ,में सभी अनावश्यक विवादो आदि से बचा रहू ,,इस प्रकार अपनी कामनाये व्यक्त करे,फिर अपनी तर्जनी को माथे लगा ले ,,फिर उस कागज़ को तह कर जेब में रख ले और भगवान का नाम लेकर प्रस्थान करे ,,विशवास रखे आपका दिन पहले की अपेक्षा शुभ होगा ,,,कागज पर एक बार बनाया हुआ [लिखा हुआ ]यह आपको महीनो तक काम देगा ,,किसी प्रकार कागज़ फट या खराब हो जाने पर बहते जल में विसर्जित कर ,पुनः बुधवार या गणेश चतुर्थी को इसे पहले की तरह बना सकते हैं 
इस प्रयोग के साथ भोजपत्र पर निर्मित व्यापार वृद्धि यन्त्र अथवा महालक्ष्मी सर्वतोभद्र यन्त्र अथवा श्री यन्त्र अपने प्रतिष्ठान लगाए और रोज धुप दीप से उसकी पूजा करते रहे ,,खुद बगलामुखी यन्त्र धारण करे जिससे आप जो कहे उसका प्रभाव ग्राहक या सम्बंधित व्यक्ति पर पड़े ,आपका प्रभाव बढे ,सुरक्षा के साथ बुरी नज़रों आदि से बचाव हो और निर्विघ्नता रहे ,,यदि आपको लगता है की किसी प्रकार का अभिचार या बंधन दूकान-प्रतिष्ठान या घर पर किया गया है या किया जा रहा है तो वहां भी बगलामुखी यन्त्र लगाएं ,और बगला या काली या दुर्गा सहस्त्रनाम /कवच का पाठ करके जल अभिमंत्रित कर प्रतिष्ठान में छिडके ,बाधाएं समाप्त होंगी ....

जिनसे आप लाभ प्राप्त कर सकते हैं :- विविध कामना सिद्धि के कुछ मानता निम्नलिखित है जिनसे आप लाभ प्राप्त कर सकते हैं :- 1) मुकदमे में जीत हेतु - पवन तनय बल पवन सामना, बुद्धि बिबेक बिज्ञान निधाना। कवन सो काज कठिन जग माही, जो नहीं होइ तात तुम पाहि।।

जिनसे आप लाभ प्राप्त कर सकते हैं :-
विविध कामना सिद्धि के कुछ मानता निम्नलिखित है जिनसे आप लाभ प्राप्त कर सकते हैं :-

1) मुकदमे में जीत हेतु -
पवन तनय बल पवन सामना, बुद्धि बिबेक बिज्ञान निधाना।
कवन सो काज कठिन जग माही, जो नहीं होइ तात तुम पाहि।।

2) श्री हनुमान जी की प्रसन्नता प्राप्ति के लिए -
सुमिरि पवनसुत पावन नामू 7 अपने बस करी राखे रामू।।

3) मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिए -
हनुमान अंगद रन गाजे। हांक सुनत रजनीचर भाजे।।

 5) डर व भूत भागने का मंत्र -
प्रनवउं पवनकुमार खेल बन पावक ग्यान घन।
जासु हृदय अगर बसहि राम सर चाप धार।।
6) ज्ञान-प्राप्ति के लिये-
छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।

7) यात्रा की सफलता के लिए-
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयं राखि कोसलपुर राजा॥

8)  विवाह के लिए-
तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि संवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुंअरि लई हंकारि कै॥

9) शत्रुता समाप्ति हेतु -
बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥

10) मनचाहे कार्यों की सफलता हेतु -
भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।

11) काम धंदे के लिए
बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।

12) गरीबी समाप्ति हेतु -
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।

13) विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिए
दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥

14) शिक्षा में सफलता के लिए
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भांती। जासु कृपा नहिं कृपां अघाती॥

15) संकट-नाश के लिए
जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।